3. विभिन्न मुद्राओं की विनिमय दरों को क्या प्रभावित करता है?
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तो अब आपको मुद्रा बाज़ारों के बारे में काफी कुछ पता चल चुका है। अब जब आप उनके बारे में और उनसे संबंधित विभिन्न प्रमुख शब्दों को पढ़ चुके हैं, तो अब उन कारकों पर एक नज़र डालनी चाहिए जो मुद्रा बाज़ारों में मुद्राओं की विनिमय दरों को प्रभावित करते हैं। हालांकि मुद्रा विनिमय दरों को दिन-प्रतिदिन के आधार पर प्रभावित करने वाले कई छोटे-बड़े कारक हो सकते हैं लेकिन ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं जिनके बारे में आपको पूरी जानकारी होनी चाहिए।
चलिए देखते हैं कि वो क्या हैं!
1. महंगाई की दर
समय के साथ, वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी को महंगाई कहा जाता है। इन कीमतों में बढ़ोतरी के चलते किसी देश की मुद्रा की खरीदने की क्षमता गिर जाती है। सरल शब्दों में, इसका मतलब यह है कि महंगाई होने पर आप उतने ही पैसे से कम सामान खरीद पाते हैं।
उदाहरण के लिए मान लें कि आप आम तौर पर 1 किलोग्राम टमाटर को ₹30 में खरीद सकते हैं। महंगाई इसी परिस्थिति को बदलती है। आप उन्हीं ₹30 में केवल 3/4 किलोग्राम या उससे कम ही खरीद सकते हैं। दूसरे शब्दों में, 1 किलोग्राम टमाटर की कीमत ₹30 से अधिक होगी।
किसी देश की महंगाई की दर का उसकी मुद्रा पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। महंगाई की एक उच्च दर एक मुद्रा के मूल्य को गिराने और विमूल्यन का कारण बनती है, जबकि महंगाई की दर कम होने पर मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है।
2. भुगतान शेष/ बैलेंस ऑफ पेमेंट्स
भुगतान शेष एक विवरण है जो किसी देश में धन के आने (इनफ्लो) और उसी देश से धन के जाने (आउटफ्लो) के बीच के अंतर को दर्शाता है। आमतौर पर इसे समय की एक निर्धारित अवधि के लिए तैयार किया जाता है। यह देश की वस्तु और सेवाओं के आयात और निर्यात पर ध्यान रखता है। भुगतान शेष में कमी का मतलब है कि धन का आउटफ्लो इसके इनफ्लो से अधिक है। इसका मतलब है कि एक देश जितना कमा रहा है उससे अधिक वह भुगतान कर रहा है। स्वाभाविक रूप से इस मामले में देश की मुद्रा का मूल्य घट जाएगा।
3. सरकारी कर्ज/ गवर्मेंट डेट
यह सार्वजनिक ऋण या राष्ट्रीय ऋण के रूप में भी जाना जाता है। यह इस बात का माप है कि किसी देश की सरकार पर अपने लेनदारों का कितना बकाया है। एक देश की सरकार अपने वार्षिक बजटीय खर्च को फाइनेंस करने के लिए आमतौर पर बॉन्ड, टी-बिल और अन्य सिक्योरिटीज़ को जारी करके पैसे उधार लेती है। उच्च सरकारी ऋण वाले देश की मुद्रा का मूल्य घटने की संभावना, कम सरकारी ऋण वाले देश की तुलना में ज़्यादा है।
4. टर्म्स ऑफ ट्रेड
टर्म्स ऑफ ट्रेड मूल रूप से एक रेशियो है जो किसी देश की औसत निर्यात कीमतों को उसके औसत आयात कीमतों की तुलना में आकती है। गणितीय रूप से यह इस तरह दिखता है:
टर्म्स ऑफ ट्रेड= (निर्यात मूल्यों का सूचकांक ÷ आयात मूल्यों का सूचकांक) x 100 |
अगर किसी देश का निर्यात मूल्य उसके आयात मूल्य से अधिक है तो उसकी मुद्रा की मांग बढ़ेगी और इसके चलते मुद्रा का मूल्य बढ़ेगा। इसी तरह अगर आयात अधिक है तो मुद्रा का मूल्य गिर जाता है।
5. अर्थव्यवस्था की स्थिति
देश की अर्थव्यवस्था उसकी मुद्रा की विनिमय दर निर्धारित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। जब किसी अर्थव्यवस्था में मंदी आती है तो देश का केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अन्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों को पैसा उधार देने की दर को घटा देता है। केंद्रीय बैंक की उधार दर में गिरावट से अर्थव्यवस्था में पैसे का प्रचलन बढ़ेगा, जिससे महंगाई की दर बढ़ जाएगी। और जैसा कि हमने पहले ही इस अध्याय में देखा था कि महंगाई की एक उच्च द,र एक मुद्रा के मूल्य को कम करती है।
6. राजनीतिक परिस्थिति
किसी देश की राजनीतिक स्थिरता में उसकी मुद्रा की विनिमय दरों को प्रभावित करने की क्षमता भी होती है। व्यापारियों और निवेशकों को अनिश्चितता अधिक पसंद नहीं है। अस्थिर राजनीतिक स्थिति वाला देश निवेशकों के लिए कम आकर्षक होता है और इससे विदेशी निवेश के आने की संभावना भी कम हो जाती है। इससे मुद्रा का मूल्य कम हो सकता है।
अन्य राजनीतिक घटनाएं और निर्णय भी किसी देश की मुद्रा दरों को प्रभावित करते हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण ब्रेक्सिट जनमत संग्रह है, जिसके कारण कुछ समय के लिए पाउंड में तेज़ गिरावट आई जिससे बाकी क्षेत्रों में मंदी आई और फिर ये रेट , जनमत संग्रह से पहले की दरों की तुलना में कम ही रहा ।
7. बाज़ार का नज़रिया
किसी देश की मुद्रा के बारे में सार्वजनिक धारणा का भी मुद्रा विनिमय दरों पर प्रभाव पड़ता है। आमतौर पर मुद्रा बाज़ार का नज़रिया समाचार रिपोर्टों और वर्तमान घटनाओं पर आधारित होता है। अगर मुद्रा बाज़ार किसी देश की मुद्रा को एक सकारात्मक रूप में देखता है तो इसकी मांग तेजी से बढ़ेगी, और इसी के चलते उस मुद्रा का मूल्य भी बढ़ जाएगा।
निष्कर्ष
एक मुद्रा व्यापारी के रूप में इन कारकों पर नज़र रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे आपको पोजिशन लेने के तरीके को प्रभावित कर सकते हैं। अब जब आपने इन कारकों पर अच्छे से नज़र डाल ली है, तो अब उन घटनाओं की ओर आगे बढ़ने का समय है जिन्हें आपको मुद्रा व्यापार शुरू करने से पहले जानना जरूरी है। हम अगले अध्याय में इस बारे में बात करेंगे।
अब तक आपने पढ़ा
- समय के साथ, वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी को महंगाई कहा जाता है। वस्तु की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते किसी देश की मुद्रा की खरीदने की क्षमता गिर जाती है।
- महंगाई की एक उच्च दर, एक मुद्रा के मूल्य को गिराने और विमूल्यन का कारण बनती है, जबकि महंगाई की दर कम होने पर मुद्रा का भाव बढ़ जाता है।
- भुगतान शेष एक विवरण है जो किसी देश में धन के आने (इनफ्लो) और उसी देश से धन के जाने (आउटफ्लो) के बीच के अंतर को दर्शाता है।
- भुगतान शेष में कमी का मतलब है कि धन का आउटफ्लो इसके इनफ्लो से अधिक है। इसका मतलब है कि एक देश जितना कमा रहा है उससे अधिक वह भुगतान कर रहा है।
- उच्च सरकारी ऋण वाले देश की मुद्रा का मूल्य घटने की संभावना, कम सरकारी ऋण वाले देश की तुलना में ज़्यादा है।
- टर्म्स ऑफ ट्रेड एक रेशियो है जो किसी देश की औसत निर्यात कीमतों को उसके औसत आयात मूल्यों की तुलना में आकती है। अगर किसी देश का निर्यात मूल्य उसके आयात मूल्य से अधिक है तो उसकी मुद्रा का मूल्य बढ़ेगा क्योंकि यह मुद्रा की मांग को बढ़ाएगा। इसी तरह अगर आयात अधिक है तो मुद्रा का मूल्य गिर जाता है।
- एक देश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पर उसकी मुद्रा के एक्सचेंज रेट पर अहम रूप से प्रभाव डालती है।
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